
Nasta Jatakam by Dr Sukhdev Chaturvedhi [RP]

Description
सम्पादकीय
जातक की जन्म पत्रिका नष्ट हो गया हो, या, गर्भाधान पोर जन्म को आादि जात ही न हो तो ज्योतिष में एक ऐसी विधि है जिसमें उसका उचित परेशान हो सकता है। यह विधि तट-जातक जान के नाम में ज्योतिष के प्रायः सभी ग्रन्यों में प्रतिपादित की गयी है किन्तु, इस विधि के विभिन्न पक्षों का प्रतिपादन एक ग्राम में जितना और जिस रूप में है उतना उस रूप में दूसरे प्रन्य में नहीं मिलता, और, एमा प्राचार्य के मत से दूसरे प्राचार्य के मत में भिन्नता भी है। इसलिए ज्योतिष के विद्वान, गोपार्थी पौर जिज्ञासा यह अनुभव करते रहे है कि इन सभी प्रतिपादनों को एक स्थान पर इस तरह प्रस्तुत किया जाए कि नष्ट-जातक ज्ञान के सभी पक्ष वर्गीकृत होकर तो सामने पाएँ ही, उस सम्बन्ध में विभिन्न प्राचार्यों के मतभेदों का
पापा और सीमा भी ज्ञात हो सके। इस आवश्यकता की पूर्ति की है धीमान् स्व पण्डित मुकुन्द देवश ने । उन्होंने इस विधि के प्रायः सभी उपलब्ध प्रतिपादनों का प्रामाणिक पर यांचा संभव वैज्ञानिक संग्रह किया है । उन्होंने संग्रह ही नहीं किया है प्रत्युत उन प्रतिपादनों में परस्पर सम्बन्ध यौर घन्तर भी प्रदर्शित किया है। उन्होंने प्रायः सभी संग्रहित श्लोकों को अपनी व्याख्या द्वारा कठिन विषय को सरल भी बनाया है। ज्योतिष के अनेक पारि भाषिक शब्दों की व्याख्या करने के साथ ही प्रमाण देवश ने यथा प्रसंग उन शब्दों के लिए प्रचलित शब्द भी दिये हैं जो पय-बन्ध की सीमाों के कारण अपने प्रचलित या पल्प-प्रचलित रूप में प्रयुक्त हुए हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने अपना चिन्तन भी व्यक्त किया है ग्रौर कुछ स्वरचित इलाकों का समावेश भी किया है। थी दैवज्ञ के 1. जीवन-परिचय, व्यक्तित्व और कृतित्व पर एक संछिप्त किन्तु सार गभित लेख लिखकर उनके पुत्र श्री चक्रधर शर्मा ने इस ग्रन्थ की उपयोगिता में वृद्धि की है। इन सभी कारणों से यह प्रन्ध एक स्वतन्त्र अन्य की श्रेणी में रखा जाएगा। इस प्रत्यय से ज्योतिष के ऐसे ही पम्प विषयों पर प्रज्ञा लिसे जाने की प्रेरणा ली जानी चाहिए।