
Muhurta Chintamani Commentary By Dr. Sureshchandra Mishra [RP]

Description
मुहूर्त पर सर्वोच्च, प्रामाणिक, बहुमान्य ग्रन्थ । कर्म अनुसार मुहूर्त चयन : एक सुविधा। विवाह मिलान पर विपुल सामग्री। वास्तु की व्यावहारिक, प्रामाणिक प्रस्तुति। मन्त्रीपद शपथ ग्रहण मुहूर्त : सटीक आयाम । गृहनिर्माण व गृह प्रवेश का सारगर्भित विवेचना यात्रा, विवाद : मुकदमा, नालिश मुहूर्त। इच्छित संतान प्राप्ति मुहूर्त। धर्मशास्त्र, ज्योतिष व नैतिकता का संगम। काव्य-सौन्दर्य, रमणीय, कमनीय, स्मरणीय। सोलह संस्कारों के प्रामाणिक मुहूर्त। विवाह कब होगा : जातक व मुहूर्त समवेत । मंगलीक विचार : निवारण के उपाय। शुभाशुभ का निर्णय : सरल ढंग। शास्त्र की सरल, सुगम व प्रामाणिक प्रस्तुति। स्वयं भी मुहूर्त निर्णय करने योग्य। घर बनाने से पूर्व : अवश्य पठनीय। सर्वप्रिय, मनमोहक, सुबोध शैली।
भूमिका प्राकृत ग्रन्य मुहूर्तचिन्तामणि, संस्कृत हिन्दी टीका के साथ आज पाठकों के सम्मुख है। मुहूर्त विषय पर सबसे अधिक प्रामाणिक, प्रसिद्ध एवं व्यावहारिक शैली में लिखा गया यह ग्रन्थ अपने क्षेत्र में अद्वितीय है। इसलिए यह आज तक अपना स्थान अक्षुण्ण बनाए हुए है। प्रारम्भिक विद्यार्थियों से लेकर विद्वत् समुदाय तक समान रूप से लोकप्रिय यह ग्रन्थ-रल ज्योतिष के संहिता शाखा स्कन्द का उपांग है प्रस्तुत ग्रन्थ पर गोविन्द दैवज्ञ कृत पीयूषधारा संस्कृत टीका व प्रमिताक्षरा ये दो टीकाएँ प्रसिद्ध हैं। प्रमिताक्षरा टीका, स्वयं ग्रंथकार राम दैवज्ञ ने ही अपने ग्रन्थ पर लिखी थी। पीयूषधारा भी इन्हीं के ज्येष्ठ भ्राता श्री नीलकण्ठदैवज्ञ के पुत्र गोविन्द अर्थात् मुहूर्तचिन्तामणि कार के भतीजे ने लिखी थी संस्कृत टीकाओं में दोनों ही टीकाएँ प्रामाणिक व समादृत हैं। लेकिन पीयूषधारा विस्तृत है तथा प्रमिताक्षरा अपने नाम के अनुरूप ही प्रमाण सीमित अक्षरों वाली सारगर्भित है। उसकी महत्ता इस बात से और बढ़ जाती है कि वह स्वयं ग्रन्थकार द्वारा ही लिखी गई है। ग्रन्थकार के मन्तव्य को स्वयं ग्रन्थकार या सर्वज्ञ ईश्वर ही अधिक बेहतर ढंग से समझ सकता है, इसीलिए ग्रन्थकार की संस्कृत टीका को इस संस्करण में स्थान दिया गया है। आज के पाठक मुहूर्त विषय को तार्किकता से समझ सकें, एतदर्थ अभिनव युगानुकूल अर्थयुक्त हिन्दी व्याख्या की आवश्यकता तो थी ही, उस पर भी केवल सीधा शब्दानुवाद मात्र करने वाली टीकाएँ ही आज तक प्रकाशित हुई हैं।