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Acharya Varamihira Ka Jyotish Mein Yogadan By Dr. Bhojaraj Dwivedi [RP]

Description
भूमिका
मैंने स्वनाम अन्य ज्योतिष और वास्तु शास्त्र के अंतरराष्ट्रीय ख्याति के विशिष्ट विद्वान् मित्रवर डॉ. पं. भोजराज द्विवेदी द्वारा संपादित व प्रस्तुत शोध प्रबन्ध का अध्ययन किया। यह शोध प्रबन्ध 22 अध्यायों में विभाजित है, जो आचार्य वराहमिहिर को केन्द्र में लेकर लिखा गया है। इस प्रबन्ध में होरा-शास्त्र, सामुद्रिक शास्त्र, वास्तुकला, रल विद्या, भूगोल वाया, वनस्पति शास्त्र, शकुन शास्त्र और मनोविज्ञान का भी उत्तम प्रतिपादन किया गया है इससे इस प्रबन्ध की सम्पन्नता का सहज ही में अनुमान किया जा सकता है। प्रबन्ध में ज्योतिष शास्त्र की प्राचीनता, ज्योतिष शास्त्र की उपादेयता और महत्व तथा ज्योतिष के त्रिस्कन्ध, ज्योतिष के लक्षण और कर्तव्य, वेद-अंग के रूप में ज्योतिष का विवेचन, वेदों में पृथ्वी के स्परूप, वेदों में विभिन्न ग्रहों के प्रभाव आदि विषयों पर बहुत उत्तम और स्वाध्यायपूर्ण विवेचन किया गया है ज्योतिष के वैदिक देवता वरुण, वेद-वेदांग में ज्योतिष की प्राचीनता, वैदिक काल के पश्चात्
एवं पौराणिक काल के पूर्व ज्योतिष की स्थिति, वराहमिहिर की प्राचीनता पर विस्तृत प्रकाश डाला गया है। ज्योतिर्विदाभरण के अनुसार वराहमिहिर की कथा भविष्य पुराण में वराहमिहिर, जैन साहित्य में वराहमिहिर, वराहमिहिर के वंश-परिचय का भी विश्लेषण कर ग्रन्थ को सर्वांगपूर्ण बनाने का प्रयास किया गया है वराहमिहिर