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Dasha Phal Vichar by Krishna Kumar [AP]

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Description

[11:58, 10/7/2020] Raahul Lakhera: 1 दशा फल विचार के कतिपय सूत्र 12 शुभ फल 13 मंगल नीच नहीं 14 राहु या केतु भी उत्तम 1.5 त्रिकोणेश युक्त ग्रह दशा 6 धन लाभ दशा ।7 पाप ग्रह शुभ युक्त या दृष्ट होने पर शुभ 18 दशा फल किस प्रकार 19 लाभेश दशा फल 110 शुभ अशुभ दशा फल ।। ग्रह दशा फल विचार (शंभु होरा प्रकाश मतानुसार) 1.12 दशा में भाव कारक विचार 1.13 भावाधिपति दशा विचार 114 दशा मुक्तिनाथ का भाव और राशि में प्रभाव संबंध 1.15 दशरथ और मुक्तिनाथ एक ही राशि में 1.16,दशा व अन्तर्दशानाथ परस्पर केंद्र व त्रिकोण भाव में होने पर शुभ व सुख-दायी .17 पाप ग्रह से सुख 1.18. नीच राशिस्थ या शत्र क्षेत्री ग्रह की दशा 1.19 शीर्षोदय या पृष्ठोदय राशि में स्थित ग्रह की दशा 1 20 राहु केतु का दशा फल 121 यह स्थिति से दशा फल (पूर्णा व रिक्ता दशाएं) 1.22 ग्रहों के विषय व विचारणीय आयाम 1.23 मंत्रेश्वर की फलदीपिका से 1.24 समीक्षा

सूर्य दशा फलम्

21 बली सूर्य से धन मान व यश प्राप्ति 22 सूर्य दशा का फल 23 सूर्य की शुभ दशा में राजा से लाभ व अधिकार प्राप्ति 2.4 अशुभ दशा में चोर तथा अग्नि भय 25 पांच स्थान के योग और सूर्य दशा फल 26 लग्नस्थ सूर्य दशा में राज्यसभा 27 उच्चस्थ

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अध्याय

अध्याय 2
[11:58, 10/7/2020] Raahul Lakhera: 8. मंगल-सूर्य 9 मंगल-चंद 49 विशेष फल।

राहु दशा फलम्

5.1 राहु की दशा में सरकार से परेशानी तथा धन व यश की हानि 52 राहु की शुभ दशा में धन, धर्म तथा अधिकार प्राप्ति 53 स्त्री पुत्र का वियोग तथा परदेशवास 54 राहु की उच्च राशि वृष, मूल त्रिकोण राशि, मिथुन 5.5 अष्टम या द्वादश में राहु 56 फलदीपिका के अनुसार राहु का अशुभ फल 57 राहु का शुभ फल 5.8 राहु का विशेष फल वृश्चिक, मीन में राहु शुभ है 59 राहु की दशा और भाव गत स्थिति । 510 राहु की अन्तर्दशाएं । राहु-राहु 2 राहु-गुरु 3. राहु-शनि 4 राहु-बुध 5, राहु-केतु 6 राहु-शुक्र 7.राहु-सूर्य 8 राहु-चंद्रमा 9 राहु-मंगल 5.11 विशेष

फल। गुरु दशा फलम्

6.1 गुरु की दशा में राज कृपा, पद व अधिकार की प्राप्ति 62 शुभ गुरु की दशा में सुख, सौभाग्य, धन तथा सत्ता लाभ 63 गुरु दशा में शत्रु नाश 64 गुरु की अशुभ दशा में उदर या कर्ण रोग तथा राजभय 65 गुरु की सामान्य दशा में लाभ य यश की प्राप्ति । 66 महर्षि पराशर के अनुसार उच्चस्थ गुरु से राजसम्मान व कार्यसिद्धि 67 स्त्री, पुत्र, मित्र समागम 68अशुभ गुरु दशा में कर्ण, रोग 6.9 गुरु की भागवत स्थिति का दशा फल 6.10 गुरु की अन्तर्दशाएं | गुरु-गुरु 2 गुरु-शनि 3 गुरु बुध 4. गुरु-केतु 5.गुरु-शुक्र 6 गुरु-सूर्य7.गुरु-चंद्रमा 8 गुरु-मंगल 9 गुरु-राशि 6.11 विशेष

शनि दशा फलम्

7.1 शनि की दशा में कलंक, शत्रु भय व आर्थिक कष्ट 7.2 शनि की शुभ दशा में धन वैभव तथा सत्ता

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अध्याय

अध्याय 6

अध्याय 7
[11:59, 10/7/2020] Raahul Lakhera: अध्याय-1 दशा फल विचार के कतिपय सूत्र

1.। बाधा ज्योतिष बन्धुओं की कठिनाई होती है कि जन्म कुंडली शुभ होने पर भी जातक को शुभ फल प्राप्त ना होते। कभी तो दशा, भुक्ति (अन्तर्दशा) व गोचर में ग्रहों की ऐसी विषम परिस्थिति बनती है कि जातक व्याकल हो जाता

है। ऐसे दुखी जन को सुखी बनाना, उसमें आशा उत्साह व उमग जगाना ही

ज्योतिष की सफलता है। अस्तु।

12 शुभ फलदायी दशा

। जो ग्रह जन्म कुंडली में केन्द्र, त्रिकोण, लाभ या धन भाव में (1.2.4.5. 7,9, 10, 11 ये भी) हो।

2. जो ग्रह उच्च राशि, स्वराशि या मित्र राशि में हो। 3. जो है शुभ ग्रहों से युक्त दृष्ट हो।

4. जो ग्रह भाव मध्य में स्थित या पढ़ने में बली हों तो उनकी दशा अन्तर्दशा प्रत्यन्तर दशा व सूक्ष्म दशा बहुधा धन, स्वास्थ्य, सुख व सम्मान दिया

करती है।

5. त्रिपुरा या त्रिक भाव में स्थित पाप ग्रह (सूर्य मंगल, शनि, राह) अथवा दुःस्थान के स्वामी ग्रह यदि दुःस्थान में हो तो भी अपनी दशा व भुक्ति में शुभ फल दिया करते है।

13

मंगल नीच नहीं

यो तो कर्क राशि का मंगल नीच होता है किन्तु ऐसा मंगल अपनी मेष राशि से चतुर्थ (सुख भाव) में होने से व वृश्चिक से भाग्य भवन में (नवमस्थ) होने से व्यापार व्यवसाय तथा मान सम्मान की वृद्धि तथा भाग्योदय किया करता है। मंगल की दशा अंतर्दशा में जातक लाम और प्रतिष्ठा पाता है।

14 राहु या केतु भी उत्तम

राहु या केतु केंद्र या त्रिकोण में स्थित हो, अथवा केंद्र स्थान में बैठा राहु केतु

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